V.S Awasthi

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बुलबुल का बच्चा

प्रतियोगिता हेतु रचना 

बुलबुल का बच्चा
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चूं चूं करता मित्र हमारा हमें छोड़कर चला गया।
पन्द्रह दिनों तक प्यार लुटाया अश्रु हमारे बहा गया।।
पता नहीं किन क्रूर हस्त ने उसके प्राणों का हरण किया।
निरपराध , निर्दोष जीव को मौत के मुख में झोंक दिया।।
सुबह से वह चूं चूं करता बिस्तर पर मेरे आ जाता था।
मेरी तकिया पर बैठ कर फिर मुझको स्वयं जगाता था।।
मेरे बिस्तर और कमरे में फुदक-फुदक कर उड़ता था।
कभी-कभी तो हाथ में बैठ फिर प्यार से बातें करता था।।
मैं भी उसके साथ खेल बचपन के दिनों में खो जाता।
तन के कष्टों को भूल कर मैं बूढ़े से बच्चा बन जाता।।
आज सुबह वह आया था मेरे अधरों को चूमा था।
जैसे उसको पता चल गया पूरे कमरे में वह घूमा था।।
उसके अन्तिम चुंबन को मैं अब तक नहीं भुला पाया।
याद सताती है उसकी अन्तिम क्षण नहीं खिला पाया।।
मेरे घर में उसका अवतरण हुआ प्रणान्त हुआ मेरे घर में।
मन उद्वेलित कलप रहा अब अश्रु भरे हैं दोनों नयनन में।।
पथिक भी कितना विव्हल है पक्षी पर जान छिड़कता है।
अब अश्रु भरे हैं नयनों में बगिया में भटकता फिरता है।।
मित्र तो बस एक मित्र ही है पशु, पक्षी हो या‌ हो मानव।
मित्रतता निभाये जो दिल से सच्चा है वही मित्र जानव।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर

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3 Comments

बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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Alka jain

08-Jul-2023 09:49 PM

Nice

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Reena yadav

08-Jul-2023 03:59 PM

👍👍

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